नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा–अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।
जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥
ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा॥
जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाए। उसकी विरति रहे ठिकाने॥
जो तेरी महिमा को जाने। रुद्राक्ष की माला ले कर॥
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर। आलस छोड़ करे गुणगाना॥
माँ तुम उसको सुख पहुचाना। ब्रह्मचारिणी तेरो नाम॥
पूर्ण करो सब मेरे काम। भक्त तेरे चरणों का पुजारी॥
रखना लाज मेरी महतारी।